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Thursday 13 November 2014

जिगर का क्या कसूर था

12 साल के मासूम ने क्यों की खुदकुशी

12 साल के मासूम का कसूर क्या इतना अजीम था...कि उसे माफ नहीं किया जा सकता था...और मजबूरन उसे मौत का रास्ता चुनना पड़ा। बच्चे देश का भविष्य होते हैं अब इस बात पर कौन यकीन करेगा। मासूम विद्या के मंदिर में कुछ हासिल करने की तालीम लेते हैं इस पर एतबार किसको होगा...क्योंकि जिस विद्या के मंदिर में तालीम दी जाती है...अब उसी मंदिर से मौत का फरफान एक बच्चे के दिलो-दिमाग में घर कर गया था। उसे इतना सताया गया....इतना कोसा गया...उसे लोहे और लकड़ियों के बेत से इतना जलील किया गया कि उसने दुनिया को अलविदा कहने का आखिरी और अटल फैसला किया।

क्यों दुनिया को छोड़ गया जिगर ?


वो तो दुनिया को छोड़ गया लेकिन एक परिवार के लिए सदमा और आंसू का सागर यहीं छोड़ गया....इस कहानी का दर्द सिर्फ एक परिवार को नहीं है...माफ करिए ये कहानी नहीं...हकीकत है...हमारे तैयार होते सपनों की....सच्चाई है विद्या के मंदिर में दिए जाने वाले ज्ञान की और पैदाम है भारत की आवम के लिए। अब बच्चों को स्कूल मत भेजना क्योंकि मास्टर जी मारते हैं...डांटते हैं...काम का बोझ लादते हैं...लेकिन नहीं बताते कि काम को कैसे खत्म करना है। जिस रुलादेने वाली हकीकत से हम आपको रूबरू करवा रहे हैं वो राजस्थान के सिरोही से ताल्लुक रखती है। पूरा वाकया मोरली गांव का है...जहां मंगलवार को 12 साल के मासूम ने अपने ही घर की रसोई में अपने आप को रस्सी से टांग दिया और दुनिया को अलविदा कह दिया। जाते-जाते उसने कुछ अलफाज भी कलमबध किए...उसने कहा कि...

जिगर का सुसाइड नोट


...मैं अपनी मजबूरी की वजह से अपनी जान दे रहा हूं। मेरे घरवालों को मालूम नहीं है कि स्कूल में पंद्रह दिन से रोज एक-एक घंटे तक मुझे लकड़ी के डंडे से मारा जाता है। मैं अक्टूबर माह में बहुत बीमार रहा था। इसलिए मैं अपना स्कूल का काम नहीं कर पाया। दिवाली की छुटि्टयों में अपना पहले का काम खत्म कर दिया। इसी बीच दिवाली का काम भूल गया...
कौन है मासूम का मुजरिम ?

मासूम जिगर ने दुनिया छोड़ी लेकिन सवाल जमाना कर रहा है कि आखिर उसने मौत को क्यों गले लगाय। उसने सब के सवालों का जवाब अपने सोसाइड नोट में छोड़ा है।

जिगर का सुसाइड नोट


...मैंने दिवाली के बाद सारा काम खत्म करने की बहुत कोशिश की, लेकिन खत्म ही नहीं हो रहा। हमारे स्कूल के दो सर तारजी और भरतजी सर मेरी बात सुने बगैर मुझे सुमेरसिंह सर के पास भेजते थे। वो मुझे लोहे की स्कैल से पीटते थे। मार खाने के बाद जब मैं क्लास में आता तो एक-एक घंटे तक मुझे लकड़े के मोटे डंडे से मारते थे और बोलते थे कि घर पे कहा तो मारूंगा मैं तेरे मम्मी-पापा से नहीं डरता.... हमारी स्कूल में कई बार शराब भी लाई जाती है। हमारे भरतजी सर हमारी लाइन के लड़कों को बहुत मारते हैं। वो भी बिना किसी गलती के। पूछने पर वे कहते हैं मुझे मजा आता है और गालियां देते हैं। इनके साथ मिलकर कुछ लड़के हैं जो पूरा दिन बहुत परेशान करते थे। वो हमेशा मुझे गालियां देते हैं और झूठ बोलकर मुझे सर से पिटवाते हैं कृपया उन्हें कम से कम तीन साल की सजा हो। उन टीचरों के नाम भरतजी, तारजी सर उनको कम से कम पांच साल की सजा हो। मेरी आखिरी इच्छा है मैं कोर्ट से निवेदन करूंगा कि उन्हें सजा दो...

ऐसी है हमारी शिक्षा व्यवस्था ?



सुसाइड नोट में उसने स्कूल के तीन अध्यापकों और तीन छात्रों पर लगातार प्रताड़ना करने का आरोप लगाया है। नोट में इस बात का भी जिक्र है कि तीनों अध्यापकों को पांच साल और तीनों छात्रों को तीन साल की सजा दी जाए। अब आप ही बताइए कि उस शिक्षा मंदिर का चरित्र चित्रण कैसे किए जाए और उन गुनहगारों का जिक्र कैसे किया जाए...जिससे 12 साल के जिगर के टुकड़े को इंसाफ मिल जाए और शिक्षा के मंदिर से दोबारा किसी के मौत का पैगाम न आएं...लेकिन सवाल अभी यही बना हुआ है जिगर की मौत का जिम्मेदार कौन है...वो हुक्ममरान..जिसने सूबे में कुछ इस कदर शिक्षा की व्यवस्था कायम की है एक मासूम मौत का रास्ता चुनता है...वो शिक्षक जो नन्हें से दिमाग में खौफ का किताब लिखते हैं...वो साथी बच्चे जो अपने साथी छात्रों का इंसान नहीं समझते है...या फिर हमारा समजा ही है जो भविष्य के लिए बेहतर व्यवस्था कभी कायम ही नहीं कर पाया।

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