मैदान से हुए
बाहर लेकिन दिलों में रहेंगे नाबाद
भारत ने
वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज का दूसरा मैच और पारी जीत ली है। भारत की फतह एक पारी
और 126 रनों की थी। लेकिन इसके साथ ही सचिन के
शानदार 24 साल के एक अध्याय का भी अंत हो गया। जाते जाते सचिन के आंखों में आंसू
थे। अफसाना था...और लोगों के समर्थन का फसाना था। लेकिन जाते वक्त अपने आंसू भारत
और दुनिया की आवाम को भी दे गए। उस आवाम को जो उनके प्रशंसक है। वो जो कभी सचिन को
अलविदा नहीं कहना चाहते और शायद उन विरोधियों को भी जिनके गेंदों को उन्होंने अपने
बल्ले से हर बार रौंदा है। दुश्मन भी सोच रहा था कि ऐसा दुश्मन शायद ही कभी नसीब
हो जिसने अपने हर शॉट्स में जीत की सीख दी है। सीख जिंदगी की, सीख कामयाबी की, सीख एक फलसफे की और सबसे बड़ी अच्छे इंसान बनने की। अपनी विदाई में सचिन
ने सब को याद किया। पिता के मार्गदर्शन से शुरुआत की। मां के लाड़ को याद किया।
अपने हमसफर के जज्बे को सलाम किया। अपने बच्चों की समझ को प्यार किया। और जनता का
शुक्रिया किया। शुक्रिया उन आवाजों को किया...जिसने उनके हौसले को बुलंद किया। नम
आंखे...खामोश दिमाग लेकिन जुबान ने इस बार सब कुछ बयां किया। वो बयां किया जिस वजह
से सचिन ‘सचिन’ हैं। जीते हम भी हैं और आप भी लेकिन सचिन ने अपने जीवन में सब को शामिल किया। अपनी जीत को सबके बीच बाट दिया। अपने गर्व को दूसरे में
महसूस किया। यकीनन सचिन की विदाई एक सूनेपन को उजाकर करती है। मैदान के खालीपन को
उजागर करती है। और बताती है कि हर बार खेल बड़ा नहीं होता कभी-कभार खिलाड़ी भी
बड़ा हो जाता है। और यही वजह है कि सचिन रमेश तेंदुलकर की विदाई का हर शख्स गवाह
बनना चाहता था। हर शख्स सचिन को एक झलक अपने पास देखना चाहता था। लेकिन देखने के
लिए दुनिया में और भी बहुत कुछ है। देखोगे तो सचिन का रिकॉर्ड दिखेगा, दिखेगा सचिन का समर्पण,
दिखेगी सचिन कि वो लगन जो उन्होंने अपने प्रोफेशन के साथ दिखाई है।
वो जजवा जिसने उन्हें भगवान का दर्जा दिलाया है। सचिन के एक अध्याय का अंत जरूर हो
गया है लेकिन सीख की शुरुआत की नई किताब खुल गई है। यही है संसार जहां आता तो हर
शख्स है लेकिन कुछ ही हैं जो हमें बहुत कुछ सिखा जाता है। और उससे से भी कम लोग
हैं जो सबकुछ सीख पाते हैं। लेकिन अगर कुछ सीख गए तो शायद हम एक और सचिन को दोबारा
बनाने में कामयाब हो जाएंगे। और फिर नए कीर्तिमान को दोबारा याद कर सकेंगे।