देखो फिर चुनावी त्योहार आया
निकाय
चुनाव का सियासी शोर खत्म हो गया है...यानी दावों और वादों का दौर पूरा हो गया। अब
कमान सूबे की जनता के हाथ में आ गई है। 22 तारीख को सूबे के 46 निकायों के चुनाव
होने हैं और सवाल है कि दावों की दाल किसकी गलने वाली है।
खादी के मन में
कितना सद्विचार आया
?
गुरुवार
शाम के 5 बजे तो
सियासी शोर थम गया...प्रचार का दौर खत्म हो गया...अब 46 निकायों के चुनाव को अंजाम
दिया जाएगा...चुनाव आयोग ने इसकी तारीख 22 नवंबर मुकर्रर की है...लेकिन क्या इस
चुनाव के नतीजों का भी ठीक वैसा ही अंजाम होगा, जैसा विधानसभा चुनाव के उलट
उपचुनाव में दिखा था। बड़े से बड़े नेता गली से मुहल्ले तक घूम गए...हालांकि सत्ता
से बेदखल हुई पार्टी के नेताओं ने इस बार ज्यादा मेहनत की क्योंकि उनके पास चुनाव
प्रचार करने के अलावा कुछ नहीं बचा था।
किसकी पकेगी दावों
की दाल ?
बीजेपी
से लेकर कांग्रेस और उसके बाद निर्दलीय प्रत्याशियों ने दावों से लेकर वादों का
पूरा पिटारा जनता के सामने खोल दिया। अब प्रत्याशी अपने दावों की दाल के पकने का
इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस जहां इस बार अपनी खोई साख हासिल करने में जुटी दिखी
तो वहीं बीजेपी उपचुनाव में खोए दावों को तलाशती नजर आई। उपचुनाव में भले ही मोदी
लहर काम ना आई हो लेकिन फिर भी बीजेपी नेता...मोदी बोल बोलते दिखे।
हर सियासी चाल पर अब होगा सवाल
चुनावी
जीत के लिए जहां मुख्यमंत्री ने अपने जिम्मेदार मंत्रियों को कमान सौंपी थी तो
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट खुद ही गांवों का दौरा करते दिखे। अब खादी के
सद्विचार, दावों की दाल और हर सियासी चाल का हिसाब होगा...लेकिन सवाल है कि दावों
और वादों के बीच हकीकत में जीत किस की होगी।
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