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Friday 28 November 2014

नासमझी से हुआ बवाल !



छात्र संघ चुनाव के परिणाम रद्द क्या हुए, राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पूरे विश्वद्यालय को ही आखाड़े में बदल दिया...लेकिन इसके पीछे की वजह को तलाशने की कोशिश किसी ने नहीं की।...उन्होंने भी नहीं जिन्हें सिसासत का बड़ा तजुर्बा हासिल था...उस तजुर्बे के बाद भी वो सियासत की पहली पाठशाल को हिंसक होने से नहीं रोक सके।

समझते नहीं वो कुछ भी

आप तो समझदार थे !
बवाल...बवाल और सिर्फ बवाल...लेकिन इस बीच किसी ने ये नहीं सोचा कि अगर वक्त रहते वो कदम उठाते तो ये बवाल हिंसक तकरार में तब्दील नहीं होता। गुरुवार को हाईकोर्ट ने छात्रसंघ चुनाव के परिणाम को रद्द किया तो शुक्रवार को सबकी शामत आ गई। गुट में सब निकले...अखिल भारतीय विद्यापरिषद भी...भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ भी और दूसरे समर्थक भी...और इस बीच ज्ञान पीठ रण भूमि में बदल गया।

फैसले के 24 घंटे बाद भी

सुरक्षा के लिए क्यों नहीं तैयार थे ?
लात घूंसों की बरसात हुई...पुलिस के साथ तकरार हुई...और पुलिस छात्रों पर बलवा इस्तेमाल करती दिखी...लेकिन निपटारे की शुरुआत थोड़ी जल्दी होती तो शायद सुरक्षा को यूं चुनौती नहीं दी जाती। पुलिस की चुस्ती देखते बन रही थी...लेकिन छात्रों के तेवर के आगे बौनी साबित हो रही थी...क्योंकि पुलिस और प्रशासन की सक्रियता एक लंबी सुस्ती के बाद दिखी थी। इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि गुरुवार के मामले को शुक्रवार को निपटाया जा रहा था। मुद्दा गर्म हो चुका था...छात्र हिंसक हो चले थे..क्योंकि बात सियासत की पहली पाठशाला की थी...लेकिन जिन्हें सियासत का बड़ा तजुर्बा हासिल था वो सब जानकर भी समझने को तैयार नहीं थे।


Thursday 27 November 2014

कहां से आएंगे नौकरशाह ?

क्या अब राजस्थान लोक सवा आयोग नए अधिकारियों की भर्ती नहीं करवा पाएगा...क्योंकि पिछले तीन साल में RPSC के जरिए एक भी अधिकारी की भर्ती नहीं हुई है...लेकिन जिस तरह से मामला कोर्ट में पड़ा हुआ है...आगे की तस्वीर भी धुंधली ही दिखाई दे रही है। अब सवाल है कि RPSC की गलतियों का खामियाजा वो अभियर्थी क्यों भुगते, जिन्हों मेहनत से इम्तिहान पास किया।

RPSC की परीक्षा बनी मजाक!

सब्र का बांध अब हिचकियां लेने लगा है...और जिन आंखों ने अपने साथ सूबे की तकदीर सुधारने का ख्वाब देखा था...वो आंखें दरकती हुई पानी बहा रही है...लेकिन फिर भी इन आंसूओं को मरुधरा की धरती पर देखना ना मुमकिन सा हो गया है...क्योंकि तीन साल में RPSC ने एक भी अधिकारी की भर्ती नहीं की है...और आगे की उम्मीद भी रेगिस्तान को हरा करने जैसी लग रही है।

गलती नौकरशाहों ने कीऔर छात्रों का भविष्य हुआ खाक !

RPSC की गलती का खामियाजा उन अभ्यर्थियों को भुगतना पड़ रहा है..जिन्होंने RAS की मेन परीक्षा पास कर ली है...लेकिन फिर भी उनकी ज्वाईनिंग नहीं हो पाएगी। क्योंकि परीक्षा परिणामों को कोर्ट में चुनौती दी गई है...जिसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर रिजल्ट को दोबारा घोषित करने को कहा गया है। लेकिन पेंच यहां फंसा हुआ कि अगर बदले पैटर्न पर दोबारा रिजल्ट घोषित हुए तो अब याचिका उन अभ्यर्थियों की तरफ से दायर होगी, जो पिछली परीक्षा के परिमाण के बाद सुनहरे ख्वाब देख रहे थे...लेकिन अब तक की हकीकत ये है कि तीन साल में RPSC एक भी अफसर नहीं बना पाई...।



Monday 24 November 2014

वो इतना बेरहम था !

वो इतना बेरहम था !

कि जालिम बन गया !

7 जन्मों के रिश्ते पर 10 वार कर गया

तड़पती हुई मर गई बीवी !

और वो मौके से फरार हो गया...

उसकी पत्नी ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया...वो भी अपने पति की आंखों के सामने...क्योंकि उसका मुजरिम और उसका हत्यारा भी पति ही था...और वारदात को अंजाम देकर मौके से भागने वाला भी उसका ही पति था...उसने दो बेटियों के सामने उसकी मां को मौत की नींद सुला दिया, क्योंकि शायद वो अपनी बेटियों के सामने मुजरिम बनने को तैयार था। जिस बेरहम कहनी के बारे में आप पढ़ रहे हैं वो फतेहपुर शखावटी की है...और पूरा मंजर नगरदास गांव का है। रात का पहर था, लिहाजा सब सोए थे वो कातिल पति भी और उसकी मासूम बीवी भी। उन दोनों की मासूम बेटियां भी बेफिक्र थी...क्योंकि उन्हें किसी अनहोनी का अंदेशा नहीं था। गहरी रात में सब नींद की आगोश में थे...उस बीच नगरदास गांव के रहने वाले देवकरण जाट की नींद रात में अचनाक खुल गई...ठीक वैसे ही जैसे किसी शैतान की आंखें रात में खुलती है...रात के करीब साढ़े 10 बजे होंगे...वो उठकर अपनी पत्नी सुमित्रा के पास गया...बाद में उसे दूसरे कमरे में चलने को कहा...और कमरा बंद कर अचानक कुल्हाड़ी से हमला कर बैठा। उसने अपनी पत्नी पर गिन कर 10 वार किए। और उनकी बेटियां अपने पिता और अपनी मां के मुजरिम को एक साथ देख रही थी...क्योंकि सुमित्रा के चिल्लाने में उनकी बेटियों ने दरवाजा तोड़ दिया था...उन्होंने अपने पिता के हाथ से कुल्हाड़ी भी छीन ली थी...लेकिन देवकरण पर तो जैसे कत्ल करने का फितूर सवार था...और जल्दी ही पूरा कमरा खून के रंग से लाल हो गया और अपनी बेटियों के सामने अपनी पत्नी को मौत के घाट उतारने वाला मौके से फरार हो गया। अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद देवकरण ने अपने काका ससुर को भी फोन किया और बताया कि उसने उसकी भतीजी को मौत की नींद सुला दिया है। जिसके बाद उसकी बेटियों ने पूरे वाकये का ब्यूरो परिवार के लोगों को दिया। बाद मे पुलिस को खबर दी गई...लेकिन उस वक्त तक आरोपी पति फरार हो चुका था...लेकिन दिन के उजाले में वो अपने कपड़े लेने घर आया...इस बीच पुलिस भी मौके पर पहुंची हुई थी। पुलिस को देखते ही देवकरण मौके से भागने लगा...लेकिन पुलिस ने उसका पीछा करते हुए उसे पकड़ लिया...बाद में अपने साथ ले गई।

...वो पति अब गिरफ्तार हो चुका है।

Saturday 22 November 2014

10 रुपए का लालच देकर रेप

सीकर में इंसानियत की सारी हदें पार कर दी गई...पूरे इलाके की आंखें फटी की फटी रह गई...क्योंकि सीकर के फतेहपुर में 10 रुपए देकर एक शख्स पर हैवानियत इस कदर छाई कि वो मासूम की इज्जत का मुजरिम बन गया।

इससे ज्यादा खौफनाक कुछ नहीं  हो सकता !
इससे ज्यादा घिनौना कुछ नहीं हो सकता !
इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं !

हवस की आग को ठंडा करने के लिए गुनाह के गर्त में इससे ज्यादा नहीं गिरा जा सकता...पूरे वाकये को सुनकर आप हक्का-बक्का रह जाएंगे क्योंकि जब आप को पता लगेगा कि गुनाह को अंजाम देने के लिए 10 रुपए को जरिया बनाया गया....मुजरिम के बारे में सोचकर अपके दिमाग का गुस्सा जितना बढ़ेगा...मासूम की सूरते हाल सुनकर आपकी आंखों में पानी आ जाएगा। क्योंकि वो मासूम महज 6 साल की थी...उसे दुनियादारी के बारे में ज्यादा पता नहीं था...लेकिन उसके साथ वो किया गया...जिसे वो कभी समझ नहीं सकी...बस चीख और आंसू बाहर आए।

6 साल की मासूम के साथ रेप10 रुपए का लालच देकर दरिंदगी

सीकर के फतेहपुर कस्बे के वार्ड नबंर 35 में सबसे घिनौने वारदात को अंजाम दिया गया...मोमीनपुरा मोहल्ले के लोग उस वक्त सकते में आ गए जब रोती-बिलकती 6 साल की मासूम अपने घर पहुंची...और उस मासूम ने जो बयां किया...उसने सब के होश उड़ा दिए। वो मासूम दरगाह पर दुआ मांगने गई थी...लेकिन दुआ के बीच एक दरिंदा आ गया...जिसने उसे बहलाने के लिए पहले 10 रुपए का लालच दिया फिर सुनसान जगह पर ले जाकर उसे अपनी हवस का शिकार बना बैठा।

हैवानियत की हद पार हुई !
गिरफ्तार हुआ मासूम का मुजरिम

फतेहपुर पुलिस उपाधीक्षक विनोद कालेर के मुताबिक वार्ड 35 के मोमीनपुरा मोहल्ला की रहने वाली 6 साल की बच्ची को उसके घरवालों ने दुकान पर सामान लाने भेजा था...लेकिन इस बीच वो कब्रिस्तान के पास मौजूद दरगाह पर दुआ मांगने चली गई। लेकिन इस दरमियां चेजारों मोहल्ले का रहने वाला दिलशाद उस मासूम का पीछा करने लगा...और उस मासूम के पास पहुंचने के बाद उसने उसे 10 रुपए का लालच दिया और फिर कब्रिस्तान के पास बने एक मकान में ले जाकर उसकी इज्जत को रौंद दिया। वारदात के बाद मासूम खून से लतपत अपने घर आई...पहले तो घर वालों को कुछ समझ नहीं आया...लेकिन जब मासूम ने हिचकते हुए पूरे वाकये का ब्योरा दिया तो परिवार के लोगों के होश उड़ गए...बाद में पीड़ित को अस्पताल ले जाया गया...पूरे मामले की जानकारी पुलिस को दी गई। फिलहाल पुलिस ने केस दर्ज करते हुए आरोपी को हिरासत में ले लिया और आगे की कार्रवाई कर रही हैआगे की तस्वीर कैसी होगी इसे फिलहाल बयां नहीं किया जा सकता है।


Friday 21 November 2014

उपेक्षा ने दिया दर्द !


बीजेपी के बड़े नेता बीमार हुए तो उनके बेटे ने बीमारी के लिए पार्टी को जिम्मेदार ठहरा दिया...जिसके बाद सवाल उठने लगे कि क्या पार्टी की अनदेखी नेताओं को बीमार कर रही है...और अगर इसमें सच्चाई है तो इसके शिकार कितने हो चुके हैं।

पिता की उपेक्षा से बेटा परेशान

बीजेपी के एक बड़े नेता बीमारी के बाद अस्पताल में हैं और बाहर बखेड़ा खड़ा हो गया। सियासी बवाल की शुरुआत उनके बेटे के बयान से शुरू हुई...जिसके बाद सवाल उठने लगे कि पार्टी में सब कुछ ठीक तो है।

बेटे के बयान से बढ़ा सियासी घमासान

उनके पास भले ही कोई ओहदा नहीं हो...लेकिन विधायक धनश्याम तिवाड़ी पार्टी के बड़े नेता हैं...इसलिए इस पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी कुछ नहीं बोलेंगे....लेकिन जिसे बोलना था...उसने सब कुछ बयां कर दिया।

अनदेखी के दर्द ने पहुंचाया अस्पताल !

मर्ज का इलाज ढूंढने अब बेटा अखिलेश तिवाड़ी सियासी मैदान में है। निशाने पर सूबे के हुकमरान हैं, लेकिन सवाल है कि जिस बीमारी की वजह को घनश्याम तिवाड़ी के बेटे अखिलेश तिवाड़ी ने आसानी से पहचान लिया क्या पार्टी में ओहदा रखने वालों में वो कूवत है...की वो सीधे मुंह बात भी कर पाएं।

इलाज तलाशने बेटा निकला मैदान ?

घनश्याम तिवारी की बीमारी के बाद बढ़े सियासी घमासान ने अब सवाल खड़े किए हैं कि क्या पार्टी की अनदेखी नेताओं को बीमार कर रही है...और अगर ये सच है तो इसके शिकार कितने हैं


Thursday 20 November 2014

कौन पड़ेगा किस पर भारी ?

देखो फिर चुनावी त्योहार आया

निकाय चुनाव का सियासी शोर खत्म हो गया है...यानी दावों और वादों का दौर पूरा हो गया। अब कमान सूबे की जनता के हाथ में आ गई है। 22 तारीख को सूबे के 46 निकायों के चुनाव होने हैं और सवाल है कि दावों की दाल किसकी गलने वाली है।

खादी के मन में कितना सद्विचार आया ?

गुरुवार शाम के 5 बजे तो सियासी शोर थम गया...प्रचार का दौर खत्म हो गया...अब 46 निकायों के चुनाव को अंजाम दिया जाएगा...चुनाव आयोग ने इसकी तारीख 22 नवंबर मुकर्रर की है...लेकिन क्या इस चुनाव के नतीजों का भी ठीक वैसा ही अंजाम होगा, जैसा विधानसभा चुनाव के उलट उपचुनाव में दिखा था। बड़े से बड़े नेता गली से मुहल्ले तक घूम गए...हालांकि सत्ता से बेदखल हुई पार्टी के नेताओं ने इस बार ज्यादा मेहनत की क्योंकि उनके पास चुनाव प्रचार करने के अलावा कुछ नहीं बचा था।

किसकी पकेगी दावों की दाल ?

बीजेपी से लेकर कांग्रेस और उसके बाद निर्दलीय प्रत्याशियों ने दावों से लेकर वादों का पूरा पिटारा जनता के सामने खोल दिया। अब प्रत्याशी अपने दावों की दाल के पकने का इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस जहां इस बार अपनी खोई साख हासिल करने में जुटी दिखी तो वहीं बीजेपी उपचुनाव में खोए दावों को तलाशती नजर आई। उपचुनाव में भले ही मोदी लहर काम ना आई हो लेकिन फिर भी बीजेपी नेता...मोदी बोल बोलते दिखे।

हर सियासी चाल पर अब होगा सवाल

चुनावी जीत के लिए जहां मुख्यमंत्री ने अपने जिम्मेदार मंत्रियों को कमान सौंपी थी तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट खुद ही गांवों का दौरा करते दिखे। अब खादी के सद्विचार, दावों की दाल और हर सियासी चाल का हिसाब होगा...लेकिन सवाल है कि दावों और वादों के बीच हकीकत में जीत किस की होगी।


Wednesday 19 November 2014

हाईटेक अपराधी, लुटी-पिटी पुलिस !

खोखले दावों में अपराध कम कर डाला !

कुछ कहूं इससे पहले ये बाताइये कि इन आंकड़ों को देखने के बाद आपके दिमाग में क्या ख्याल आतें हैं।
1 लाख पुलिसकर्मियों के पास महज 12 हजार हथियार हैं
साल 2011 में पुलिस पर हमले के 23 मामले दर्ज हुए
साल 2013 में ये आंकड़ा 47 पर जा पहुंचा
साल 2014 जुलाई तक 23 मामले और दर्ज हुए
(ये आंकड़े राजस्थान के हैं)

इन आंकड़ों और दावों की बाच का फर्क बताएं उससे पहले बताते हैं कि देश के गृह मंत्री अपने विभाग के बारे में क्या सोचते हैं।

(राजनाथ सिंह, गृह मंत्रीसिलेबस पुराना हैं...मुझे नहीं लगता कि बदली हुई परिस्थियों में हम अपराधियों का मुकाबला कर सकते हैं)

बहुत हो गई हौसलों की उड़ान

केंद्र के गृह मंत्री को बदली हुई परिस्थियों में बदला हुआ सिलेबस चाहिए...लेकिन सूबे में पुलिस अकादमी के डॉयरेक्टर पद को सुशोभित कर रहे बीएल सोनी ने जैसे पहले ही सारा सिलेबस बदल दिया हो।
(बीएल सोनी, डायरेक्टर, पुलिस अकादमी: हर आदमी की अपनी कैपेसिटी है...लेकिन हम अंतर्राष्ट्रीय पुलिस से कम नहीं हैं)

बिना हथियार अपराध पर कैसे लगे लगाम ?

तो सुना आपने इन्हें अपने विभाग पर इतना गुमान है कि ये अपनी पुलिस की तुलना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रहे हैं...भले ही इनका विभाग अर्दली की पत्नी से रेप के आरोप में अपने ही IPS अधिकारी मधुकर टंडन को 17 साल से नहीं खोज पाया है। पुलिस की वाहवाही के और भी दावें हैं...
(गुलाब चंद कटारिया, गृह मंत्री, राजस्थान: राजस्थान सबसे पहला राज्य है, जिसने पुलिस एक्ट को दुरुस्त किया)

डंडे का हो रहा AK 47 से मुकाबला !

पुलिस एक्ट दुरुस्त हो गया...लेकिन एक्ट को लागू करवाने वाले अभी भी डंडे के सहारे AK 47 का सामना कर रहे हैं...अभी कुछ रोज पहले का ही मामला है...जब कुख्यात अपराधी का पीछा कर रही पुलिस टीम पर हमला हुआ... हमले में हैड कांस्टेबल फैज मोहम्मद की मौत हो गई...उनके सम्मान में शहादत की शहनाई बजाई गई...और बस पुलिस का काम पूरा हो गया....जांच हुई ...तो बदमाशों की गाड़ी में बड़े हथियार निकले...हम तो चौंक गए...कि प्रदेश की पुलिस डंडों के सहारे एके-47 का सामना कर रही थी...जाहिर है ...कि ऐसे तो हाईटैक बदमाशों के आगे सूबे की खाकी लुटी पिटी ही नजर आएगी



Tuesday 18 November 2014

धमकी से लेंगे वोट ?

सत्ता मिली तो सुरूर चढ़ गया !

भिवाड़ी में बयान देखर कैबिनेट मंत्री हेम सिंह भड़ाना ने सब को डरा दिया है। दरअसल उन्होंने कहा है कि केंद्र और सूबे में उनकी सरकार है। उन्होंने सवाल भी पूछे हैं कि अगर हर जगह उनके लोग हैं तो विकास को किस दरवाजे से लाओगे। हेम सिंह भड़ाना का ये भड़कीला बयान तब आय़ा जब निकाय चुनाव नजदीक हैं। अब सवाल है कि क्या लोकतंत्र की रूप रेखा भी डर के साए में तैयार की जाएगी। और क्या खौफ दिखाकर वोट बटोरे जा सकते हैं।

जीत के बाद गुरूर बढ़ गया !

लोकतंत्र की परिभाषा बदलने जनहित में जारी एक नया बयान आया है। सत्ता की ताकत दिखाकर सियासत का नया पैगाम आया है...हवाला ये है कि केंद्र में उनकी सरकार है...सूबे में भी उनकी सत्ता है...MP भी उनके है और विधायक भी। और सवाल पूछे गए हैं कि अब बताओ किस दरवाजे या खिड़की से सूबे का विकास कराओगे।

डर के साए में होगा निकाय चुनाव ?

सियासत की ये समझदारी किसके लिए। लोकतंत्र की ये नई भागिदारी किसके लिए...कहते हैं कि डर से कामों का क्रियान्वन होता है तो क्या अब लोकतंत्र का भी निर्माण इसी ब्रम्ह वाक्य से होगा।

सत्ता की शक्ति का कितना होगा प्रभाव ?


क्या सत्ता के सुरूर ने गुरूर बढ़ा दिया है...या सूबे में कैबिनेट मंत्री और निकाय चुनाव का प्रभार संभाले रहे बीजेपी के शिरोमणी हेमसिंह भड़ाना ने ये मान लिया है कि संसद से नया कानून पारित होगा और लोकतंत्र की रूपरेखा को एकल पार्टी तंत्र में बदल दिया जाएगा।

आरे ! ये क्या कह गए मंत्री जी

बेईमान चला रहे सियासी कारोबार !

निकाय चुनाव में जीत की दावेदारी के लिए मंच सजा था...सूबे के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया जनता के सरोकार को सहारा दे रहे थे...लेकिन इस बीच एक बात सामने आई, वो ये थी कि सरोकारी के बीच बेईमान नेता बीच खड़े हैं...अब सवाल है कि क्या नेता बेईमान हैं और अगर ये कौम बेईमानों की कौम है तो इनके बीच सरोकार की सियासत कैसे की जाए।

मन मैला, भाषण लच्छेदार !

सत्ता तले सरोकार कैसे बेकार हो जाता है...इस प्रशानवली का उत्तर अब सियासत की उत्तर पुस्तिका में आ गया है। सूबे की सूरत बदलने के लिए खूब पैसे लुटाए गए...इसके लिए मंत्री जी ने एक प्रयोग भी किया। लेकिन उनकी तमाम कोशिशों का हश्र जो हुआ वो सूबे के गृह मंत्री सबके सामने रख चुके हैं...लेकिन सवाल है कि ख्वाब में पलने वाली हकीकत को हाशिए पर किसने बिठाया।

नेताओं के भीतर भरा है भ्रष्टाचार

(गुलाबचंद कटारिया : जब तक राजनेता ईमानदार नहीं होगा...वो राज क्रमचारी को ईमानदार नहीं बना सकता)
सौ टके की एक बात। सवाल भी ठीक, जवाब भी खरा-खरा...लेकिन सवाल है कि जब सियासत के पुरोधा ही बेबस हों तो जमीन खोती हकीकत को संवारा कैसे जाएगा।

सूबे के गृह मंत्री ने खींचा है खाका

(गुलाबचंद कटारिया : लेकिन जब नेता और प्रशासन ही मिल बांटकर खाएंगे तो अंजाम क्या होगा)
सुना है ओहदा बढ़ने से साख बढ़ती है...और ओहदे के नीच काम करने वालों का तरीका भी...लेकिन ये सब फुकटिया कहानी है, आज ये भी सुन लिया।
(गुलाबचंद कटारिया : कद बढ़ने से हाईट नहीं बढ़ती हां फौकट का पैसा जरूर बढ़ जाता है...तो काहे की माथापच्ची)

क्या नेता हैं बेईमान ?

सियासी पन्नों में लिपटी ये हकीकत हताश करने वाली है...लेकिन सवाल है कि बेईमानों के बीच सरोकार की सियासत कैसे करें।


Saturday 15 November 2014

क्या आपका लाडला बिगड़ रहा है ?

हिंसा सिखा रही है शिक्षा ?

जोधपुर में एक मामूली विवाद के लिए एक छात्र ने दूसरे पर बंदूक तान दी। अब सवाल है कि क्या शिक्षा के मंदिर में हिंसा का पाठ पढ़ाया जा रहा है...या फिर ये तालीम घर-घर की है। सवाल ये भी है कि क्या हमारा समाज ही इतना भड़कीला हो चला है कि बच्चे भी अब हमेशा तेवर में रहते हैं।

छठी के छात्र ने क्यों तानी बंदूक ?

ज्ञान का प्रवाह अब हिंसक हो चला है या सृजन के स्रोत में ही खोट है...या फिर बेहतर शिक्षा व्यवस्था और तालीम के बीच दावों की धज्जियां उड़ रही है। बाल दिवस पर बच्चों में संस्कार को बढ़ावा देने के लिए जोधपुर के पावटा बी रोड़ पर नोबल इंटरनेशनल स्कूल में मेले का आय़ोजन किया गया था...बच्चों के मनोरंजन के लिए तरह तरह के स्टॉल लगे थे...एक स्टॉल बैलून शूटिंग का भी था...लेकिन मौज मौस्ती के बीच एक छात्र दूसरे का दुश्मन बन बैठा।

शिक्षा के मंदिर से खत्म हो रहा व्यवहारिक ज्ञान?

विवाद की शुरुआत से पहले दो छात्रों के बीच मौज मस्ती की अदला बदली हुई थी...एक ने कोल्डड्रिंक पिलाने के बदले एयरगन से बलून को शूट करवाने का भरोसा दिलाया था। लेकिन कोल्डड्रिंक पीने के बाद उसने अपना वादा नहीं निभाया...लिहाजा पहले छात्र ने दूसरे छात्र पर एयरगन तान दी और फायर भी कर दिया...पूरे वाकये में एक छात्र के सिर में छर्रा तीन इंच धस गया...जिसके बाद उसे अस्पतला में भर्ती वरवाना पड़ा....लेकिन आपको हैरानी होगी कि ये हिंसक रूप छठी क्लास में पढ़ने वाले छात्र ने दिखाई थी।

हिंसा के लिए गुनहगार कौन ?


वीओ पूरे वाकये के बाद महामंदिर थाने में विद्यालय संचालन के खिलाफ लापरवाही का मामला दर्ज कराया गया है। लेकिन सवाल कि छात्रों पर हावी होती हिंसक प्रवृति का जिम्मेदार कौन है...वो परिवार जो बच्चों में शांति की भावना नहीं जगा सके...वो ज्ञान का मंदिर जो शांति का पाठ नहीं पढ़ा सका या फिर हमारा समाज ही है तो हर वक्त हमेशा तेवर में रहता है।

Friday 14 November 2014

भगवान को शौचालय पहुंचा दिया गया !

शहर में हंगामा, विवादों में रचनाकार

क्या माडर्न आर्ट यानी नायाब रचना, आस्था को चोट पहुंचा रही है या भारतीय रचनाकार ग्लोबल हो चले हैं। जयपुर में एक कलाकार की कलाकारी ने शहर में बखेड़ा खड़ा कर दिया...क्योंकि इस बार रचनाकार के दिमाग से भगवान ने सीधे शौचालय में दस्तक दी थी। अब सवाल है कि क्या रचनाकार की बहती भावना ने धर्म में अधर्म की स्थिति पैदा कर दी है।

स्वच्छता के महत्व को कुछ यूं बताया गया

गुलाबी नगरी की फिजाओं में मॉडर्न आर्ट की दस्तक ने हंगामा खड़ा कर दिया है। मौका था जयपुर आर्ट समिट में अपनी रचना दिखाना का, लिहाजा एक रचनाकार ने अपनी रचना से सबको चौंका दिया है। स्वच्छता की गंभीरता को समझाने के लिए उन्होंने शौचालय में इस्तेमाल होने वाले टॉयलेट पॉट और कमोड पर अपनी रचना की पेशगी करते हुए गणपति की आकृति उकेर दी। इधर उनका मार्डन ऑर्ट सबके सामने आया तो उधर सामाजिक संस्थाओं ने बखेड़ा खड़ा कर दिया।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से ऐसे हुआ खिलवाड़ !

 अब सवाल है कि क्या सच में इस बार रचनाकार की नई पेशकश ने बखेड़ा खड़ा कर दिया है...क्या मार्डन आर्ट की दस्तक ने अस्था के अस्तित्व को चोट पहुंचाई है...ये सवाल इसलिए क्योंकि शहर में हंगामा है और विवादों में रचनाकार।

आस्था से खिलवाड़ !

विवाद बढ़ा तो आयजकों ने माफी मांग ली...रचना की आहूति चढ़ रहे आस्था से किनारा कर लिया...लेकिन सवाल है कि क्या स्वच्छता को परिभाषित करने के लिए रचना को शौचालय में ही उकेरना जरूरी हो गया था....और ये भी कि अगर धर्म और स्वच्छता के बीच चुनाव की स्थिति पैदा हो जाए तो चुनाव की शुरुआत कहां से की जाए।


Thursday 13 November 2014

जिगर का क्या कसूर था

12 साल के मासूम ने क्यों की खुदकुशी

12 साल के मासूम का कसूर क्या इतना अजीम था...कि उसे माफ नहीं किया जा सकता था...और मजबूरन उसे मौत का रास्ता चुनना पड़ा। बच्चे देश का भविष्य होते हैं अब इस बात पर कौन यकीन करेगा। मासूम विद्या के मंदिर में कुछ हासिल करने की तालीम लेते हैं इस पर एतबार किसको होगा...क्योंकि जिस विद्या के मंदिर में तालीम दी जाती है...अब उसी मंदिर से मौत का फरफान एक बच्चे के दिलो-दिमाग में घर कर गया था। उसे इतना सताया गया....इतना कोसा गया...उसे लोहे और लकड़ियों के बेत से इतना जलील किया गया कि उसने दुनिया को अलविदा कहने का आखिरी और अटल फैसला किया।

क्यों दुनिया को छोड़ गया जिगर ?


वो तो दुनिया को छोड़ गया लेकिन एक परिवार के लिए सदमा और आंसू का सागर यहीं छोड़ गया....इस कहानी का दर्द सिर्फ एक परिवार को नहीं है...माफ करिए ये कहानी नहीं...हकीकत है...हमारे तैयार होते सपनों की....सच्चाई है विद्या के मंदिर में दिए जाने वाले ज्ञान की और पैदाम है भारत की आवम के लिए। अब बच्चों को स्कूल मत भेजना क्योंकि मास्टर जी मारते हैं...डांटते हैं...काम का बोझ लादते हैं...लेकिन नहीं बताते कि काम को कैसे खत्म करना है। जिस रुलादेने वाली हकीकत से हम आपको रूबरू करवा रहे हैं वो राजस्थान के सिरोही से ताल्लुक रखती है। पूरा वाकया मोरली गांव का है...जहां मंगलवार को 12 साल के मासूम ने अपने ही घर की रसोई में अपने आप को रस्सी से टांग दिया और दुनिया को अलविदा कह दिया। जाते-जाते उसने कुछ अलफाज भी कलमबध किए...उसने कहा कि...

जिगर का सुसाइड नोट


...मैं अपनी मजबूरी की वजह से अपनी जान दे रहा हूं। मेरे घरवालों को मालूम नहीं है कि स्कूल में पंद्रह दिन से रोज एक-एक घंटे तक मुझे लकड़ी के डंडे से मारा जाता है। मैं अक्टूबर माह में बहुत बीमार रहा था। इसलिए मैं अपना स्कूल का काम नहीं कर पाया। दिवाली की छुटि्टयों में अपना पहले का काम खत्म कर दिया। इसी बीच दिवाली का काम भूल गया...
कौन है मासूम का मुजरिम ?

मासूम जिगर ने दुनिया छोड़ी लेकिन सवाल जमाना कर रहा है कि आखिर उसने मौत को क्यों गले लगाय। उसने सब के सवालों का जवाब अपने सोसाइड नोट में छोड़ा है।

जिगर का सुसाइड नोट


...मैंने दिवाली के बाद सारा काम खत्म करने की बहुत कोशिश की, लेकिन खत्म ही नहीं हो रहा। हमारे स्कूल के दो सर तारजी और भरतजी सर मेरी बात सुने बगैर मुझे सुमेरसिंह सर के पास भेजते थे। वो मुझे लोहे की स्कैल से पीटते थे। मार खाने के बाद जब मैं क्लास में आता तो एक-एक घंटे तक मुझे लकड़े के मोटे डंडे से मारते थे और बोलते थे कि घर पे कहा तो मारूंगा मैं तेरे मम्मी-पापा से नहीं डरता.... हमारी स्कूल में कई बार शराब भी लाई जाती है। हमारे भरतजी सर हमारी लाइन के लड़कों को बहुत मारते हैं। वो भी बिना किसी गलती के। पूछने पर वे कहते हैं मुझे मजा आता है और गालियां देते हैं। इनके साथ मिलकर कुछ लड़के हैं जो पूरा दिन बहुत परेशान करते थे। वो हमेशा मुझे गालियां देते हैं और झूठ बोलकर मुझे सर से पिटवाते हैं कृपया उन्हें कम से कम तीन साल की सजा हो। उन टीचरों के नाम भरतजी, तारजी सर उनको कम से कम पांच साल की सजा हो। मेरी आखिरी इच्छा है मैं कोर्ट से निवेदन करूंगा कि उन्हें सजा दो...

ऐसी है हमारी शिक्षा व्यवस्था ?



सुसाइड नोट में उसने स्कूल के तीन अध्यापकों और तीन छात्रों पर लगातार प्रताड़ना करने का आरोप लगाया है। नोट में इस बात का भी जिक्र है कि तीनों अध्यापकों को पांच साल और तीनों छात्रों को तीन साल की सजा दी जाए। अब आप ही बताइए कि उस शिक्षा मंदिर का चरित्र चित्रण कैसे किए जाए और उन गुनहगारों का जिक्र कैसे किया जाए...जिससे 12 साल के जिगर के टुकड़े को इंसाफ मिल जाए और शिक्षा के मंदिर से दोबारा किसी के मौत का पैगाम न आएं...लेकिन सवाल अभी यही बना हुआ है जिगर की मौत का जिम्मेदार कौन है...वो हुक्ममरान..जिसने सूबे में कुछ इस कदर शिक्षा की व्यवस्था कायम की है एक मासूम मौत का रास्ता चुनता है...वो शिक्षक जो नन्हें से दिमाग में खौफ का किताब लिखते हैं...वो साथी बच्चे जो अपने साथी छात्रों का इंसान नहीं समझते है...या फिर हमारा समजा ही है जो भविष्य के लिए बेहतर व्यवस्था कभी कायम ही नहीं कर पाया।

‘संघ’ के आगे झुक गई वर्दी

वर्दी भूल गई अपना सम्मान ?

क्या सत्ता बदलने के साथ ही खाकी की निष्ठा बदल जाती है या वर्दी सत्ता शिरोमणी की तलाश में रहती है। ये सवाल इसलिए क्योंकि सूबे और केंद्र में सत्ता बदले के बाद वर्दी की नई आस्था परिभाषित हुई है। अजमेर के ASP, संघ नेता के चरणों में साष्टांग दिखाई दे रहे हैं। अब सवाल है कि वर्दी की निष्ठा संघ में होगी तो अंजाम क्या होगा।

संघ(RSS) ही सर्वोच्च है ?

देश आजाद हुआ तो सियासी तंत्र बदल गया और बदल दिए गए प्रशासनिक तंत्र...लेकिन किसी ने भी आजादी से पहले ये नहीं सोचा था कि गुलाम मानसिकता बदलने में कई दशक लग जाएंगे...फिर भी गारंटी नहीं दी जा सकती कि हम आजाद ख्यालों में अपने सपने सजों सकते हैं...और देश के पहरेदार हमारी हकीकत की हिफाजत में तत्पर रहेंगे। सत्ता बदलते, हमने और आपने साथ देखा अब अस्था की नई तस्वीर सामने आई है।

संघम् शरणम् गच्छामि !

तस्वीर अजमेर की है...एक तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता इंद्रेश कुमार हैं तो दूसरी तरफ चरण वंदना की होड़ मची है...बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लेना हमारी संस्कृति भी है और परंपरा भी लेकिन खाकी को साष्टांग होते देख ऐसा लगता है कि शायद लोकतंत्र में नई परमपरा परिभाषित की जा रही है। अजमेर शहर के ASP शरद चौधरी को शायद इस बात की खबर लग गई है कि सत्ता का संचालन संघ से होता है...नहीं तो शायद वो इंद्रेश कुमार के सामने साष्टांग नहीं होते।

अगर झुकती रही खाकी यूं ही
तो न बन जाए खादी की जूती समान

सत्ता और खादी के सामने खाकी को नतमस्तक होते अपने कई बार देखा होगा...लेकिन अब सत्ता के केंद्र बिंदु की तलाश कर शायद उसे नमन करने की कोशिश हो रही है। लेकिन सवाल है कि अगर वर्दी की निष्ठा संघ में होगी तो अंजाम क्या होगा।




Wednesday 12 November 2014

केंद्रीय मंत्री निहालचंद मेघवाल को नहीं ढूंढ पाई पुलिस

मंत्री जी भी खो सकते हैं ?

मंत्री जी गुम हो गए हैं...केंद्र में बड़ा ओहदा है...लेकिन रेप के आरोप ने दामन पर दाग लगा दिया है...अब इसी दाग की गहराई को जानने के लिए अर्जी कोर्ट में है...लेकिन मंत्री जी हैं...कि कोर्ट में खड़े होने को भी तैयार नहीं हैं...कोर्ट ने पेशी के लिए नोटिस जारी किया तो वकील पेश हो गए...पुलिस दलील देती रही कि मंत्री जी तो मिल ही नहीं रहे हैं। जबकि मंत्रीजी हर समारोह में अपना चेहरा दिखाए जा रहे थे। हम बात कर रहे हैं केंद्रीय मंत्री निहालचंद मेघवाल की और सवाल है कि क्या कोई मंत्री भी खो सकता है...या उन्हें जाहिर करने की कोशिश ही नहीं की जा रही है। आज बिग बुलेटिन में बात इसी मुद्दे पर लेकिन उससे पहले देखिए ये रिपोर्ट।

आखिर कैसे खो गए मंत्री जी ?


क्या कोई मंत्री भी गुम हो सकता है...ये सवाल इसलिए क्योंकि रेप के आरोप में कोर्ट में पेशी के दौरान वो नहीं उनके वकील पहुंचे। पुलिस तो उन्हे ढूंढते-ढूंढते ही थक गई, दलील देती रही वो कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं...अगर केंद्रीय मंत्री निहालचंद मेघवाल पुलिस को नहीं दिखाई दे रहे हैं तो वो मोदी कैबिनट के विस्तार समारोह में चौधरी बीरेंद्र सिंह के साथ कैमरे में कैसे कैद हो गए।

कहां मिले मंत्री जी ?


केंद्रीय मंत्री का दामन दागदार है...रेप के आरोपी हैं फिर भी उनका रुतबा बरकरार है...कोर्ट के निर्देश पर उन्हें नोटिस थमाने का आदेश है...लेकिन पुलिस को वो भारत के भूगोल में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं...लेकिन तमाम समाचार चैनल के के कैमरे वो खुलेआम दिखते रहे। उन्हें एक श्रीगंगानगर में आयोजित रन फॉर यूनिटी कार्यक्रम में ढूंढ गया। समारोह में जिले के एसपी से लेकर कलेक्टर तक फोटो खींचवाने में मशगूल दिखे...लेकिन विभाग को नहीं दिखाई दिए।

और कहां-कहां मिले मंत्री निहालचंद मेघवाल ?


पुलिस के लाख जतन के बाद भी वो मंत्री ऐसे हैं कि पुलिस की नजर में नहीं आते हैं लेकिन एक बार फिर वो सूरतगढ़ में आयोजित अर्धसैनिक बल के समारोह में दिख गए...अब इतनी तस्वीरों को देख कर क्या कहा जाए...पुलिस के पहरेदार आंख होते हुए भी अपनी नजरों पर पट्टी बांधे हुए हैं या  मंत्री जी का रसूख ऐसा है कि कानून के रखवाले अपने हाथ समेटे हुए हैं ?


राजस्थान का सियासी हाल

राजस्थान में निकाय चुनाव से पहले बगावत ?

सूबे में निकाय चुनाव करीब हैं...और टिकट की जुगत में दावेदारों में बवाल मचा हुआ है...लेकिन दोनों ही पार्टियों का कहना है कि ऑल इज वेल...लेकिन सवाल है कि अगर टिकट की दावेदारी को लेकर सब कुछ ठीक है तो पीसीसी दफ्तर के आगे कर्यकर्ता ने हंगामा क्यों खड़ा किया और बीजेपी के कर्यकर्ताओं ने अपना गुस्सा जाहिर क्यों किया।

नहीं मिलेगा सबका साथ ?

निकाय चुनाव की सभी तैयारियां करीब करीब मुकम्मल हो चुकी हैं...लेकिन फिर भी सूबे की सियासत में ये सवाल सामने आ रहे हैं कि आखिर सियासी फिजाओं में अनमनी क्यों है और टिकट के दावेदारों में तनातनी क्यों दिख रही है। आज बात सिर्फ तकरार पर होगी क्योंकि जीत की जुगत और टिकट की होड़ में दावेदारों ने बवाल खड़ा कर दिया है।

क्या है पार्टी की सोच ?

पार्टी मानती रहे कि ऑल इज वैल...लेकिन बगावत की बू सियासी पार्टियों के दोनों छोर से आ रही है...और ऐसा लग रहा है कि पार्टी छावनी में तब्दील हो चुकी है। समर्थकों को खुश रख पाना दोनों ही पार्टियों के लिए टेड़ी खीर साबित हो रहा है। कांग्रेस के प्रत्याशियों की घोषणा के दौरान जहां नाराज पार्टी कार्यकर्ताओं ने पीसीसी के दफ्तर पर जमकर हंगामा किया

कैसे रुकेगा संगर्ष  ?

सिसासी संघर्ष में बंटवारे ने कुछ यूं लकीरें खींची हैं कि अब तो कहना ही पड़ेगा कि लड़ोगे तो भंवर से भी उबर जाओगे...नहीं तो खींचतान की लापरवाही कहीं किनारे पर ही न डुबो कर रख दे।
दावेदारों की ख्वाहिश

टिकट के दावेदार कह रहे हैं कि हमारी दावेदारी पर मुहर लगा तो...बुझती लौ को जरा सा जगा दो। लेकिन पार्टियो के हंगामे ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि कुछ तो है जो छुपा रही है पार्टी... वरना पार्टी के नेता अपने अलफाजों को इस कदर संवार क्यों रहे हैं।

Monday 10 November 2014

कालिख महिला की मुंह पर पोती और काला जमाना हो गया !


उस वक्त लोकतंत्र की बलि दे दी गई...जब कानून को ठेंगा दिखाकर एक महिला के कपड़े उतार दिए गए और मुंह काला कर दिया गया। पंचायत पर पागलपन का ऐसा भूत सवार हुआ कि समाज के ठेकेदारों ने कबूलनामे की खातिर महिला की इज्जत को ही सरेआम कर दिया। पूरा वाकया राजसमंद के थुरावड गांव का है जहां पंचायत के तुगलगी फरमान से सब दंग हैं। 2 नवम्बर को महिला के देवर की मौत हो गई थी जिसकी हत्या का जुर्म कबूल कराने के लिए पंचो ने महिला की इज्जत को ही सरेआम कर दिया। वारदात के बाद 30 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। 9 के खिलाफ धारा 151 के तहत मामला दर्ज किया गया है। कालिख महिला के मुंह पर पोती गई लेकिन सवाल है कि मुंह किसका काला हुआ और धब्बा किस किस पर लगा।

महुं किसका काला हुआ

महिला के बाल काट जा रहे थे, उसके कपड़े उतारे जा रहे थे...उसे भरी सभा में घुमाया जा रहा था...लेकिन पंचों के कारगुजारियों को रोकने के बजाए समाज के सब लोग सिर्फ तमाशा देख रहे थे। भौतिकी की भाषा में ये सिर्फ एक तस्वीर है...लेकिन हमें अफसोस है, 70 MM के जमाने में भी...हम पूरी तरह से इन तस्वीरों को...आपको नहीं दिखा सकते...लिहाजा, हमें इन तस्वीरों को धुंधला करना पड़ा.... बावजूद इसके, आपको इन तस्वीरों को देखना पड़ेगा...इनके अंदर झांकना होगा...इनके अंदर की सूरत को निहारना पड़ेगा...इन तस्वीरों के अंदर के दर्द को तलाशना पड़ेगा।

क्या है सरकारी मजबूरी ?


महिला की आबरू को लेकर समाज की सोच अब सब के सामने हैं...लेकिन वाकये ने पंचायती राज के मायनों को ही बदल दिया है...अब कौन कहेगा कि सब को बराबरी का हक देने की कोशिश में हैं हमारे हुक्मरान...अब कौन कहेगा कि सूबे की सूरत बदल रही है।