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Wednesday 18 February 2015

एक सिक्के के दो पहलू

पैसा खूब बोलता है, लेकिन उसकी ईकाई क्या बोलती है। एक रुपए का सिक्का क्या दिखाता है। जितनी बार पलटता हूं, उतनी बार तस्वीर बदल जाती है। कभी कभार एक ही तस्वीर दोबारा सामने आ जाती है। पैसों को अब तक मैं विकास का पैमाना मान रहा था। लेकिन इस पैमाने को जितनी बार मैंने उछाला मैं उलझन में पड़ता गया। तब मैं मिश्रित सभ्यताओं के शहर में था, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने का मुझे गुमान था। खुद पर पत्रकार होने का अभिमान था। मुझे लगा की मेरी बताई हर तस्वीर बदल सकती है। मेरी दिखाई हर खामियां दूर हो सकती है, लेकिन जल्दी ही मुझे अहसास हो गया कि मैं गलत हूं । मैं जो देखता हूं, मैं जो समझता हूं, उसे बस बेबसी के साथ देख सकता हूं, हर चीज मैं नहीं बदल सकता हूं। हर चीज की मैं व्याख्या नहीं कर सकता हूं। क्योंकि ये काम मेरा नहीं है, हमारा है। मैं बात कर रहा था, अपने गुमान की, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने के अभिमान की। हर रोज की तरह मैं आज भी अपने घर से दफ्तर के लिए निकला था। मैं सोच रहा था, कि देश के सबसे विकसित और सुसज्जित शहर में रह रहा हूं। अभी मैं अपनी मंजिल यानी अपने दफ्तर पहुंचा ही नहीं था, कि रास्ते में मुझे खुला हुआ गटर दिख गया। हैरानी मुझे खुले हुए गटर से नहीं हुई, मैं हैरान था, उस गटर में घुस कर साफ कर रहे एक शख्स को देखकर। एक रस्सी से लटका हुआ वो शख्स किसी काली गुफा जैसी गटर में घुस रहा था। उसकी बदबू को दूर से मैं महसूस कर रहा था, लेकिन वो शख्स बड़ी शिद्दत से बिना किसी नकाब के उस गटर में घुस गया। हाथों में ना कोई दस्ताने थे, ना ही शरीर पर कोई विशेष पोशाक। बस वो गंदगी को साफ करने में लगा था। मैंने उस दृष्य की तस्वीर देखी और आगे बढ़ गया। मैं करता भी क्या, मैं उससे क्या पूछता। मैं चुप रहा क्योंकि उस शख्स के लिए मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। विकसित नोएड के इस पहलू को देखकर मैं भोंचक्का था। एक शहर के दो पहलू को देखकर मैं फिर हैरान था। मेरी हैरानी ठीक वैसी ही थी जैसी हैरानी मैं एक सिक्के के दो पहलू को देखकर हैरान हो रहा था। एक तरफ एक रुपए का शब्द उकरा हुआ था तो दूसरी तरफ मेरे भारत की तस्वीर थी। मैं दफ्तर आया, अपने बॉस और अपने प्रोग्राम के लिए काम में लग गया। काम से निपटा तो चाय पीने बाहर निकला, वैसे ही जैसे हर मीडियाकर्मी एक अंतराल के बाद चाय की चुस्की पर निकलता है, लेकिन इस बार मैं अकेला था, मेरे बाकी साथी अपने कामों में व्यस्त थे। मेरी चाय अभी खत्म ही नहीं हुई थी, कि सड़क किनारे से आवाज आई, वो आवाज चाय की गुमटी के बगल में बने एक अवैध अस्थाई छपरे से आ रही थी। मैंने चाय वाले से पूछने की कोशिश की, उन्होंने कहा ये तो रोज का रोना है, आप चाय का मजा लें। लेकिन मेरी चाय के मजे के बीच वो आवाज हर बार खलल डाल रही थी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया, और आखिर में उस छपरे के आंदर झांकने पर मजबूर हुआ। पति अपनी पत्नी को पीट रहा था और पत्नी भद्दी गालियों से उसका विरोध कर रही थी। वो शब्द मैं शायद यहां जिक्र नहीं कर पाऊं, लेकिन मैं जो बताना चाहता हूं, वो मैंने बता दिया। वो मियां-बीवी झगड़ रहे थे और बगल में खड़े दो मासूम बच्चे उनके झगड़े को देखकर आंसू बहा रहे थे। जितना मैं मजबूर था, उतने ही वो बेबस वो बच्चे थे। लेकिन इस बार मैंने अपनी चुप्पी तोड़ी। शायद मुझे लगा कि इस बार मेरे पास कोई विकल्प है। कम से कम उनके झगड़े का निपटारा तो कर ही सकता हूं। मैंने उनके झगड़े को रोकने की कोशिश की। वो शख्स कुछ देर के लिए रुका, लेकिन मुझे देखते ही शायद उस महिला को हिम्मत मिल गई। अब पति पर वो हाथ उठाने लगी। कह रही थी, ये हर रोज शराब पीता है। लड़कियों को छेड़ता है और उसके सारे पैसे उसी में उड़ जाते हैं। फिर अपने झोपड़े से बाहर निकली और पैदल रिक्शे पर लगे प्लास्टिक की छत को फाड़ने लगी। कह रही थी, कमाएगा ही नहीं तो उड़ाएगा कैसे। कुछ वक्त तो मैंने उन्हें बहुत समझाया, कहा- आपके के झगड़े के बीच आपका मासूम पीस रहा है। वो कुछ देर लिए रुक गए, और मैं वहां से निकल गया। मेरे ब्रेक का वक्त खत्म हो गया था। मुझे पता नहीं उन्होंने क्या समझा, अगर समझा भी तो कहां तक उनकी समझ बरकरार रहेगी। मैंने बस एक कोशिश की ये जानते हुए भी कि मेरे जाने के बाद रात फिर काली होनी वाली है, लेकिन मुझे उम्मीद थी, इस रात की भी सुबह होगी और अगली सुबह सिर्फ मैं नहीं होंगा, हम होंगे। शायद अगली सुबह सिक्के के दो पहलू को देखकर मुझे परेशान नहीं होना पड़ेगा। मुझे उम्मीद है कि मैं नहीं तो कम से कम हम इसका जवाब ढूंढ लेंगे।

अनपढ़ है गांव की सरकार !



जयपुर: क्या गांव में पढ़ी लिखी सरकार के नाम पर फिर से अनपढ़ सत्ता में काबिज हो रहे हैं...क्या सियासत की बिसात पर फर्जी मर्कशीट का दांव खेला जा रहा है। ये सवाल इसलिए क्योंकि हनुमानगढ़ और पाली में फर्जी मार्कशीट वाले सरपंच दिखे हैं... जैसलमेर में साक्षरता का रिकॉर्ड ही जला दिया गया है...। आज बिग बुलेटिन में बात इसी मुद्दे पर लेकिन उससे पहले देखिए ये रिपोर्ट।

एक तो किया फर्जी काम !



फिर मिटाया सर्टीफिकेट से नाम !

पंचायत चुनाव के बाद...कहने को तो गांव में पढ़ी लिखी सरकार थी...लेकिन उनके सर्टिफीकेट के अक्षर सौदेबाजी की कहानी को बयां कर रहे थे...हर अक्षर अनपढ़ों को पढ़ा लिखा बता रहे थे...हर मुहर काली स्याही के रंग से छपी दिख रही थी।

आग लगा दीसच्चाईमें



कैसे करें झूठों की पहचान ?

जिनकी उम्र 40 साल थी उनका सर्टिफीकेट भी बहत्तर में बना था...जो 33 के थे...वो भी बहत्तर से ही बाहर आ रहे थे। हनुमानगढ़ और पाली में फर्जी मार्कशीट वाले सरपंच दिखे...तो जैसलमेर में साक्षरता का रिकॉर्ड ही जला दिया गया।

चुनाव के लिए फर्जीवाड़ा

सियासत में अगर थोड़ा -बहुत ईमान हो जाए....डर है कि सोने की चिड़िया फिर से हिन्दुस्तान ना हो जाए। लेकिन सियासतदानों की ख्वाहिश...फरेब का ऐसा जाल बुन रही है...कि उनका फर्ज सत्ता की ललक पाले दिख रहा है...और उनकी शिक्षा फर्जीवाड़े का दीदार करवा रही है। अब सवाल है कि आज के भ्रष्टाचार की लंका कैसे जलेगी..क्या इस दौर में कोई सियासी हनुमान जैसा पैदा होगा।

Wednesday 11 February 2015

सूर्य नमस्कार पर जिद क्यों ?

धीरे-धीरे सुलगा रहे

गीली लकड़ी मजहब की !

फेंक गया स्कूल में कोई

जलती तीली मजहब की !

 जयपुर: सूर्य नमस्कार को राजस्थान सरकार ने  स्कूलों में अनिवार्य कर दिया है। अब सवाल है  कि क्या, सूर्य नमस्कार के जरिए, सूबे की  सत्ता, मजहवी ध्रुवीकरण पैदा कर रही है।  शिक्षा के मंदिर में मजहब मजबूरी सी दिखी।  इजहार-ए-तरीका...तालीम की जगह ले  गया...मानों अब इसके तामील से ही सारे  तालीम हासिल होंगे। मजहब का मजाक या  मजहबी ज्ञान मजबूर कर रहा है।

 माहत्मा गांधी ने कहा था...धर्म जीने का तरीका  है...लेकिन बीजेपी की सत्ता में धर्म सियासी  पाठ हो गया...मानों अगर इससे शुरुआत नहीं  होगी... तो किताबें ज्ञान देने बंद कर देगी।  अक्षर दिखाई देना बंद हो जाएंगे।

सूर्य को सब देखते हैं...उसकी रोशनी से सब प्रकाशित होते हैं...उसके अतस्तिव पर किसी ने सवाल नहीं उठाया...किसी के लिए वो रोशनी की किरण है...किसी के लिए विधाता की रचना...लेकिन पता नहीं सूबे की सत्ता ने खुद को कब से विधाता मान लिया और इबादत का तरीका भी इजाद कर दिया।

Monday 9 February 2015

जयपुर में डर लगता है !



गुलाबी नगरी में हुआ अस्मत पर वार


जयपुर: अतिथि देवो भव: की मुहिम एक बार फिर धूमिल हो गई। राजस्थान की राजधानी में विदेशी महिला की आबरू को खाक कर दिया गया और इज्जत का लुटेरा फरार हो गया। अब सवाल है कि जब वो अपने देश लौटेगी तो भारत की कौन सी तस्वीर दिखाएगी। सवाल ये भी कि क्या ये सभ्यताओं का वो शहर नहीं है...जिसे हम गुलाबी नगरी कहते हैं....और क्या इस शहर की हिफाजत करने वाला कोई नहीं है।

 मुखौटा लगा कर भेड़ि़या हुआ फरार


मेहमान भगवान होते हैं...लेकिन सूबे की राजधानी में अतिथि हैवानियत की शिकार हो गई...सभ्यताओं का शहर काली कहानी बयां करने लगा...विदेशी महिला की इज्जत पर वार हुआ...और गुलाबी नगरी के रखवाले कुछ नहीं कर पाए।

सभ्यताओं के शहर में छिन गई आबरू


देश की खूबसूरती से अनजान...विदेशी मेहमान...और जब हीककत से दीदार हुआ...तो सूबा शर्मसार हो गया...गाइड की नापाक निगाहों ने घिनौनी तस्वीर का सामना कराया। जयपुर घूमने आई एक जापानी युवती को गाइड बनकर एक युवक अपने साथ ले गया, फिर उसे बंधक बनाकर हवस का शिकार बना डाला।  इसके बाद वह उसे दूदू के पास मौजूद मौजमाबाद ले गया। उसके चंगुल से निकलकर पीड़ित एक कार देखकर मदद के लिए चिल्लाई। इस पर कार सवार युवक ने उसे दूदू थाने पहुंचाया। इस पर पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

बेखौफ लुटेरे, किससे करें फरियाद ? 

दूसरा वाकया भी जयपुर का है...जब ओला कैब के ड्राइवर ने विदेशी महिला को मंजिल पर पहुंचाने के बाद, उसके नंबर पर अश्लील मैसेज भेजने लगा। यानी गाइड के बाद संवाहक ने कहर का सफर कराया...मंजिल पर पहुंचाने के बाद जिस्म की सौदेबाजी पर उतर आया...एक राजधानी में दो विदेशी मेहमानों की इज्जत मिट्टी में मिला दी गई...अब जब वो अपने देश लौटेंगे तो बढ़ते भारत की कौन सी तस्वीर पेश करेंगे?