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Tuesday 18 November 2014

आरे ! ये क्या कह गए मंत्री जी

बेईमान चला रहे सियासी कारोबार !

निकाय चुनाव में जीत की दावेदारी के लिए मंच सजा था...सूबे के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया जनता के सरोकार को सहारा दे रहे थे...लेकिन इस बीच एक बात सामने आई, वो ये थी कि सरोकारी के बीच बेईमान नेता बीच खड़े हैं...अब सवाल है कि क्या नेता बेईमान हैं और अगर ये कौम बेईमानों की कौम है तो इनके बीच सरोकार की सियासत कैसे की जाए।

मन मैला, भाषण लच्छेदार !

सत्ता तले सरोकार कैसे बेकार हो जाता है...इस प्रशानवली का उत्तर अब सियासत की उत्तर पुस्तिका में आ गया है। सूबे की सूरत बदलने के लिए खूब पैसे लुटाए गए...इसके लिए मंत्री जी ने एक प्रयोग भी किया। लेकिन उनकी तमाम कोशिशों का हश्र जो हुआ वो सूबे के गृह मंत्री सबके सामने रख चुके हैं...लेकिन सवाल है कि ख्वाब में पलने वाली हकीकत को हाशिए पर किसने बिठाया।

नेताओं के भीतर भरा है भ्रष्टाचार

(गुलाबचंद कटारिया : जब तक राजनेता ईमानदार नहीं होगा...वो राज क्रमचारी को ईमानदार नहीं बना सकता)
सौ टके की एक बात। सवाल भी ठीक, जवाब भी खरा-खरा...लेकिन सवाल है कि जब सियासत के पुरोधा ही बेबस हों तो जमीन खोती हकीकत को संवारा कैसे जाएगा।

सूबे के गृह मंत्री ने खींचा है खाका

(गुलाबचंद कटारिया : लेकिन जब नेता और प्रशासन ही मिल बांटकर खाएंगे तो अंजाम क्या होगा)
सुना है ओहदा बढ़ने से साख बढ़ती है...और ओहदे के नीच काम करने वालों का तरीका भी...लेकिन ये सब फुकटिया कहानी है, आज ये भी सुन लिया।
(गुलाबचंद कटारिया : कद बढ़ने से हाईट नहीं बढ़ती हां फौकट का पैसा जरूर बढ़ जाता है...तो काहे की माथापच्ची)

क्या नेता हैं बेईमान ?

सियासी पन्नों में लिपटी ये हकीकत हताश करने वाली है...लेकिन सवाल है कि बेईमानों के बीच सरोकार की सियासत कैसे करें।


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